Thursday 17 November 2016

भारत की आर्थिक सुचिता की दिशा में मोदी जी का कदम 

नमस्कार। भारत में काले धन और काले धन की सामानांतर अर्थव्यस्था को रोकने के लिए मोदी जी ने अभूतपूर्व कदम उठाया है। ८ नवम्बर की शाम ८:०० बजे शांयकाल प्रधानमंत्री जी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में इस बात की घोषणा की कि मध्य रात्रि के पश्चात पांच सौ और एक हजार के नोट की वैधता ख़त्म हो जाएगी।  मेरे आसपास कुछ सामान्यजन यह सोच रहे थे कि प्रधान मंत्री जी इसमें सिर्फ वही प्रसारण करेंगे जो कि वे मन की बात में करते हैं।  परंतु मुझे पता था की कुछ बिलकुल अलग होने वाला है लेकिन यह नहीं पता था कि इतनी उथल पुथल हो जाएगी। 

उसके बाद क्या हुआ वो तो पूरे भारतवर्ष को पता है। मैं कोई आर्थिक मामलों का एक्सपर्ट तो नहीं हूँ और वस्तुतः मुझे अर्थशास्त्र का कोई ज्ञान नहीं है क्योकि अर्थशास्त्र पढ़ने का मुझे कभी अवसर नहीं मिला, परन्तु अपने तुच्छ सामान्य ज्ञान से मोदी जी के इस कदम की कुछ समीक्षा करना चाहूंगा जो कि निम्नलिखित है।

इस कदम के सकारात्मक प्रभाव 
१. यह कदम भारत की अर्थव्यवस्था को सही पटरी पर लाने का एक अथक प्रयास है।
२. काले धन में इससे कमी आएगी यह आपेक्षित है।
३. जाली नोट समाप्त होंगे।
४. पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद में कमी आएगी।
५. लोग टैक्स भरने पर बाधित होंगे, जोकि अभी तक नहीं भरते थे।
६. नकली गरीब भी पहचान में आएंगे और गरीबों के लिए लाभ की योजना से बाहर किये जायेंगे।
७. काले धन के समाप्त होने से भ्रष्टाचार में भी कमी आएगी।
८. आमजन जो कि सेना में नहीं हैं उनमें भी देशभक्ति की भावना उत्पन्न हो गयी है।  लोग देश के लिए कुछ करना चाहते हैं।  तो एक मनोवैज्ञानिक पहलू भी है इस नोटबंदी के कदम का।

इस कदम के नकारात्मक पहलु 
यह कदम जल्दबाजी में लिया गया कदम है ये मुझे प्रतीत होता है। जनता में अफरातफरी मची हुयी है क्योंकि बैंक ATM काम नहीं कर रहे हैं, बैंकों के आगे बहुत लंबी लंबी कतारें लगी हुयी हैं।  लोग ६ से ८ घंटे लाइन में खड़े होने के बाद भी बिना कैश वापस घर आ रहे हैं।  भारत सरकार के कहने के बावजूद पेट्रोल पंप ५०० और १००० का छुट्टा देने में असमर्थ हैं और स्पष्ट तौर पर इन्होंने आम जनता से ५०० रु १००० रु  के पुराने और २००० रु के नए नोट लेने से इनकार कर दिया है।  आमजनता त्रस्त है।  लोग सब्जियां , दूध , ब्रेड और अन्य दैनिक भोग की वस्तुएं भी नहीं खरीद पा रहे हैं।  छोटे और मंझले दुकानदार और रेहड़ी वाले इस कदम से बहुत परेशान हैं।  जनता सारे काम धंधे छोड़कर बैंकों के बाहर लाइन लगाकर खड़ी है। रही बात २००० रु के नोट की तो यह नोट काले धन वाले लोगों का पसंदीदा नोट बनने वाला है क्योंकि यह १००० रु के पुराने नोट से भी बहुत छोटा है और इसकी कीमत भी उसके दुगनी है।

२००० रु का नोट मोदी सरकार ने वितरण समस्या को ध्यान में रख कर बनाया परंतु यही नोट मुख्य समस्या का कारण बन गया। देश भर में ATM मशीनें इस नोट के वितरण के लायक नहीं हैं (अभी यह लेख लिखने तक)। इन मशीनों को इस नोट के वितरण लायक बनाने में अभी काफी समय लगने वाला है। उसके उपरांत यह नोट दैनिक जीवन में काम आने लायक है भी नहीं।  इस नोट के छुट्टे अभी तक किसी के पास भी उपलब्ध नहीं हैं।  यह नोट काले धन वालों का पसन्दीदा नोट बनने वाला है।

दूसरा एक भ्रान्ति भारत सरकार को काले धन को लेकर भी है।  भारत सरकार सोचती है कि कला धन वाले कला धन संभलकर गोदामों में रखते हैं।  यह धरना गलत लगती है क्योकि कला धन एक समान्तर अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन चूका होता है इसलिए वह धन तो निरंतर गतिवान रहता है कहीं टिक कर नहीं रहता इसलिए ये सोचना कि काले धन की अर्थव्यवस्था बिलकुल ख़त्म हो जाएगी निराधार लगता है।  हाँ यह अवश्य है कि चोरी, डकैती और घूस द्वारा एकत्रित धन निश्चित ही भारत सरकार के इस कदम द्वारा निरर्थक हो जायेगा। कुछ मितव्ययी भी भारत सरकार के इस कदम द्वारा प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएंगे।

एक पहलू यह भी है कि हमारे देश में नकद नारायण की एक सामानांतर अर्थव्यवस्था है और जिसमे कि सभी निम्न वर्ग के लोगों को रोजगार मिलता है और कुछ उच्च वर्ग के लोगों का व्यवसाय चलता है इसलिए ये सभी भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग हैं।  अब इस नोटबंदी (डेमोनेटाइजेशन) की वज़ह से अगर इस अर्थव्यवस्था को नुक्सान पहुँचता है (जो कि अब तो निश्चित रूप से पहुंचेगा ही ) तो ये हम भारतीय लोगों के हित में नहीं होगा।  बोलने में और सोचने में अच्छा नहीं लगता परंतु इससे गरीब लोगों को बहुत नुक्सान होगा।  रही बात अमीरों की तो वे लोग बहुत ही साधन संपन्न होते हैं, वे कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं और हमेशा ही फलते फूलते हैं। वैसे यह भी एक सार्वभौमिक सत्य है कि अमीरों के बिना गरीबों की हालात ज्यादा ख़राब हो जाती है, क्योंकि रोजगार के अवसर गरीबों को अमीरों की बदौलत ही मिलते हैं।

अब बात गांवों की। भारतवर्ष सिर्फ शहरों में ही नहीं है अपितु गांवों में भी है। ग्रामीण क्षेत्रों में दूर दूर तक भी बैंकों के दर्शन नहीं होते हैं इस कारण किसानों और अन्य ग्रामीणों को पुराने नोट बदलने में कितनी समस्या का सामना करना पड़ रहा होगा इसका ज्ञान तो स्वतः ही हो जाना चाहिए।

इस नोट बैन की वज़ह से एक अलग तरह की कालाबाज़ारी शुरू हो गयी है, कुछ कालाबाज़ारी ५०० रु और १००० रु के नोट २०% तक कमीशन लेकर बदल रहे हैं। कुछ धनिक धन देकर लंबी लंबी कतारों में अपनी जगह किसी गरीब मजदूर को खड़ा कर रहे हैं। एक अलग ही तरह के व्यवसाय का अविष्कार हो चुका है।  बैंक के गार्ड और बैंक के बहार लगे पुलिस वालों की चाँदी हो गई है वे पैसे लेकर बिना लाइन के ही लोगों को नोट बदलवाने में मदद कर रहे हैं। इस कारण सीधे साधे लोग लाइन में ही खड़े रह जाते हैं और लाइन आगे बढ़ती ही नहीं और समय समाप्ति की घोषणा हो जाती है, शटर बंद, घर वापिस जाइये। इन लाइनों की वज़ह से ईमानदार टैक्स भरने वाले देशवाशियों को अपने ही बचत खाते से धन निकलना असंभव सा हो गया है।

एक बात यहाँ पर नकली नोटों की भी है। कहा ये जा रहा है कि इस नए नोट की नक़ल करना दुश्मन विदेशी एजेंसियों के लिए नामुमकिन है। क्षमा कीजिये बोलना नहीं चाहिए, मुझे भी बुरा लग रहा है, परंतु ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि विदेशी विध्वंशकारी ताकतों के लिए इसे नक़ल करना संभव नहीं है।

एक सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव यह भी है कि किसी भी देश की करेंसी का बेकार होना उस देश की साख भी गिराता है। लोगों का इसके बाद भारतीय करेंसी के ऊपर विश्वास नहीं रहेगा और वे अब स्वर्ण या फिर अन्य देशों की करेंसी का संग्रह करने पर मजबूर हो जायेंगे। सामान्य लोगों का जो धन बैंकों में जमा हो रहा है वो सारा काला धन नहीं है। और काले धन की वसूली होना एक नामुमकिन सी ही बात है। सारा कला धन एक जगह पर जमा नहीं रहता बल्कि एक समान्तर अर्थव्यस्था का हिस्सा है और सदैव ही गतिमान रहता है।  धन संग्रह करके सिर्फ चोर, डकैत , घूसखोर और कुछ मितव्ययी जन ही रखते हैं। जिन लोगों ने गलत तरीके से धन संग्रह करके रखा होगा उन्होंने उसे नष्ट कर दिया होगा अपितु उसे बैंक में जमा करने के। इसमें इतिहास का उल्लेख भी किया जा सकता है कि करेंसी को अवैध करना कभी भी किसी भी देश व शासक के लिए फायदेमंद नहीं रहा है।

यह कदम उठाने में भारत सरकार की गलतियां।
पर्याप्त तैयारी न करना।  भारत सरकार ने यह कदम बिना पर्याप्त तैयारी के उठाया है।  सबसे पहले वितरण व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए था।  नए नोट पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने चाहिए थे। 2000 रूपये के नोट की जगह ५०० रूपये के नोट का नया रूप चलन में लाना चाहिए था। ५०० रूपये और २००० रूपये के नोट पहले ही पर्याप्त मात्रा में छापकर रख लेने चाहिए थे।  ATM मशीनों को पहले ही इन नए नोटों के अनुरूप ढाल लेना चाहिए था।  घोंषणा करने के बाद ये सब कदम उठाना एक नुकसान नियंत्रित करने का तरीका मात्र हैं। हानि तो हो चुकी है। 

नोट पहले छापने में तर्क यह दिया जा रहा है कि ऐसा करने से इस साहसपूर्ण ( या दुस्साहसपूर्ण ) कदम की गोपनीयतता समाप्त हो जाती।  परंतु यह सत्य नहीं है : नए नोट छापने से किसी को भी सिर्फ यह ही पता चलता कि कोई नए डिजाईन का नोट निकलने वाला है उससे यह कहाँ पता चलता है कि सरकार कोई नोट बंद करने  वाली है।  यह सारे तर्क अब सिर्फ बात की गंभीरता को समाप्त करने के लिए दिए जाते हैं।

इस वितरण व्यवस्था में सबसे कमजोर कड़ी हमारे बैंक हैं जोकि इतने काम का बोझ उठाने के काबिल नहीं हैं। बैंकों का समय रखा गया था ८:०० बजे प्रातः से रात्रि ८:०० बजे तक परंतु बैंक काम कर रहे हैं १०:०० बजे प्रातः से दोपहर ३:०० बजे तक ही। इस सबके बीच १ घंटे का फ्री लंच भी है।  एक बार में सिर्फ ५ से ८ व्यक्ति ही अंदर जा रहे हैं और ३० मिनट का समय लग रहा है उन्हें निपटने में।  अब इतनी धीरे गति से तो हमें पैसे मिलने से तो रहे।

नोट का साइज बदलना भी एक गलत फैसला साबित हुआ क्योंकि ATM मशीनें इन नए आकार के नोट के वितरण के काबिल हैं ही नहीं। लगता है की यह गलती हमारे प्रधान मंत्री मोदी जी की नहीं है अपितु उनके सलाहकारों की है जो कि इन सब व्यवहारिक बिंदुओं पर ध्यान नहीं दे पाए और तुरंत फैसला लागू करने के लिए मोदी जी को सलाह दे दी। मोदी जी ने इस वितरण के बारे में किसी ऐसे व्यक्ति से सलाह ली जिसे इन सब बातों के बारे में गहराई से ज्ञान नहीं था। २००० रु के नोट से पहले ५०० रु के और १००० रु के नोट को बाजार में निकालना चाहिए था।  वितरण के लिए नोट पहले ही छाप कर तैयार रखने चाहिए थे। ATM मशीनों को पहले ही इस स्वरूप तैयार कर लेना चाहिए था ताकि वे २००० रु और ५०० रु के नए नोट के वितरण के लिए सक्षम रहती।

शायद मोदी जी ने इस कदम को बिलकुल गोपनीय रखते हुए कम से कम व्यक्तियों को अपने इस सहासिक कदम में सम्मिलित किया और शायद इसी वज़ह से इस कदम में कुछ खामियां रह गई होंगी।  बहरहाल जो भी है इतना तो है कि आम लोगों को अभूतपूर्व समस्या का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी समस्या लोगों को आपातकाल में या भारत पाकिस्तान युद्ध के समय में देखने को मिली हों शायद।

भारत सरकार को अब क्या करना चाहिए :
१. अधिक से अधिक मात्रा में कैश डिस्ट्रीब्यूशन काउंटर खोले जाने चाहियें। 
२. बैंकों में दिन रात काम चलना चाहिए। इसके लिए बैंक कर्मियों को विभिन्न पालियों में कार्य करना चाहिए। अभी बैंक सिर्फ ३ बजे दोपहर तक ही खुले रहते हैं। बैंक रविवार को भी खुलने चाहिए। 
३. पेट्रोल पम्पों में छोटे नोटों की व्यवस्था होनी चाहिए। 
४. भारत सरकार को ऑनलाइन भुगतान की कोई व्यवस्था करानी चाहिए जिसमे कोई भी किसी को भी भुगतान कर सके और उसपर कोई चार्ज भी न लगे।  PayTm जैसी प्राइवेट कंपनियों के भरोसे नहीं रहना चाहिए।  किसी भी दिन कुछ ऊंच नीच हो गया तो आम लोगों का बहुत नुक्सान होगा।  अगर ऐसा हो सका तो वो समय दूर नहीं जब भारतीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक कैशलेस बन जाएगी।  (परंतु हम ये अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों से न ही करें )
५. ५०० रु और १००० रु के नए नोट भी पर्याप्त मात्रा में छापने चाहिए।
६. एक अलग से टास्क फाॅर्स का गठन करना चाहिए जोकि इन सभी मामलों को ध्यान दें। 
७. एक कंप्लेंट सेंटर भी होना चाहिए जिसमें कि पेट्रोल पम्पों, बैंकों और हॉस्पिटलों के खिलाफ नोट न लेने की कंप्लेंट दर्ज की जा सकें और उनपर कोई कार्यवाही भी हो सके।

इस वक्त सारे सामान्यजन मोदी जी के साथ खड़े हैं।  इसमें हम गरीब लोग इसलिए साथ हैं क्योंकि हमें लगता है की अमीर लोग अपने काले धन के लिए परेशान हो रहे होंगे, और हरेक गरीब अपने देश के लिए त्याग करने के लिए मोदी जी के इस कदम में उनके साथ खड़ा है। परंतु अभी तक ऐसा कहीं से भी प्रतीत नहीं हो रहा है की काले धन वाले लोग परेशान हैं और गरीब ख़ुशी ख़ुशी अपने जिंदगी बिता रहे हैं इसके उलट काले धन वाले लोग खुश नज़र आ रहे हैं और गरीब लोग लंबी लंबी कतारों में खड़े हो कर मरे जा रहे हैं। सबसे बड़ी अतिशयोक्ति तो यह है की विजय माल्या भी मोदी जी के इस कदम का स्वागत कर रहे हैं।

यहाँ पर कुछ लोग गरीब सब्जी बेचने वालों , किसानों और सभी ग्रामीण क्षेत्र के लोगों से अपेक्षा करने लगे हैं की वे कैशलेस आर्थिक व्यवस्था की और अग्रसर होंगे और अचानक से PayTm जैसी ऑनलाइन wallet वाली सुविधाओं का इस्तेमाल शुरू कर देंगें जो की अत्यधिक हास्यपद है।  कैसे हम लोग ये अपेक्षा करने लगे हैं की सारे अनपढ़, गरीब लोग रातों रात स्मार्टफोन खरीद सकेंगे और उसे  इस्तेमाल भी करने लगेंगे और PayTm, Paypal इत्यादि एप्लिकेशन से धन का आदान प्रदान शुरू कर देंगे !

यहाँ पर इस बात का भी उल्लेख किया जाना चाहिए की रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) की पॉलिसियां भी ऐसी हैं जैसे की बैंकों को बाधित करना की वे SMS पर कर लगाएं , ऑनलाइन धन ट्रांसफर, कार्ड पेमेंट्स पर टैक्स लगाना। क्या ये सब कैशलेस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने वाले कदम हैं ?

मोदी जी के अनुसार ८५ % धन हमारी अर्थव्यवस्था में कला धन है और इस एक कदम से वह सब बहार निकल गया है।  तो अब सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है की १५ % रक्त साथ एक व्यक्ति (भारतीय अर्थव्यवस्था) कब तक जिन्दा रहता है ?

अभी तक गरीब लोग इस कदम में साथ हैं अपनी नकारात्मक और सकारात्मक मानसिकता की वजह से. नकारात्मक यह की हम परेशान हैं तो क्या हुआ, अमीर लोगों को ज्यादा परेशानी हो रही होगी , वे अब सड़क पर आ जायेंगे।  सकारात्मक यह की हम देश की भलाई के लिए कुछ कर रहे हैं।  परंतु अगर यह सब आर्थिक प्रतिबन्ध ज्यादा लंबे समय तक चला तो गरीब लोग ही इस व्यवस्था से ज्यादा दुखी होंगे।

अब एक बात ऑनलाइन रूपये और पैसे के लेनदेन के बारे में भी: धन का ऑनलाइन आदान प्रदान अभी तक बहुत बढ़िया और सुरक्षित नहीं है।  कई बार ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के दौरान धन गायब हो जाता है , बैंक से रूपये बाहर भी निकल गए और जिसे देने थे वहां भी नहीं पहुंचे, ये बहुत ही आम बात है।  मेरे साथ भी ऐसा कई बार हो चुका है।  ऐसे में विभिन्न लोगों से ईमेल द्वारा बातचीत की जाती है और पेमेंट का पता लगाकर उसे वापस माँगा जाता है।  अब लाख टके का प्रश्न ये है कि क्या गरीब अनपढ़ लोग ऐसा कर पाएंगे अगर उनका धन गायब हो जाता है।  दूसरा ऑनलाइन धोखाधड़ी भी एक बहुत ही आम बात है और खासकरके गरीब अनपढ़ लोगों के साथ तो ये और भी ज्यादा सम्भावना है कि वे धोखाधड़ी के शिकार हो सकते हैं। ऐसे में ये नोटबंदी कितनी सार्थक रह जाएगी और गरीब लोगों का कितना भला कर पायेगी वह भी अनिश्चित है।

इसके साथ ही मैं इस लेख को यहीं पर समाप्त करता हूँ।  इस लेख में अगर आपको कुछ पसंद न आये या फिर आपको लगे कि कोई त्रुटि है तो उस बात के लिए मेरी और से क्षमा याचना स्वीकार कीजिये।

  पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद आपका दिन शुभ हो।